सफलता: क्वीनमेरी के डॉक्टरों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाकर बचाया, प्रसव के बाद शिशु पूरी तरह सेहतमंद

सात माह के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में खून की कमी मिली तो महिला को लखनऊ के क्वीनमेरी पहुंचे थे परिजन

0 71

लखनऊ, संवाददाता।

राजधानी में KGMU (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (क्वीनमेरी) के डॉक्टरों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाकर जान बचाने में सफलता हासिल की है। क्वीनमेरी में पहली बार ‘फिटल ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया है। ऑपरेशन से प्रसव के बाद शिशु पूरी तरह से सेहतमंद है।

सात माह के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में खून की कमी पाई, क्वीनमेरी पहुंचे

उन्नाव के आदर्श नगर निवासी गर्भवती प्रतिमा वर्मा का इलाज कानपुर में चल रहा था। सात माह के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में खून की कमी पाई गई। परिवारीजन गर्भवती को लेकर क्वीनमेरी आए। यहां डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने मरीज को देखा। डॉक्टरों ने मरीज से केस हिस्ट्री ली जिसमें पता चला कि महिला पहले दो बार गर्भवती हुई थी। इस बार लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइजेशन की शिकार हुई। भ्रूण का हीमोग्लोबिन 12 से घटकर सात बचा था। जिससे हार्ट फेल हो सकता था।

दो बार पेट में भ्रूण को रक्त चढ़ाया, ऑपरेशन से शिशु का जन्म हुआ

डॉक्टर ने गर्भ में ही भ्रूण को खून चढ़ाने का फैसला किया। दो बार पेट में भ्रूण को रक्त चढ़ाया गया। 20 को ऑपरेशन से शिशु का जन्म हुआ। डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि चिकित्सा विज्ञान में इसे इंट्रायूट्राइन ट्रांसफ्यूजन कहते हैं। इसमें अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिए गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है।

विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीनमेरी में भ्रूण चिकित्सा सुविधा शुरू की गई है। अब हमने आरएच-इसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के इलाज में सफलता प्राप्त की है।

क्यों होती है भ्रूण में खूने की कमी

– डॉ. नम्रता ने बताया कि नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता का ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव होने पर के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई

– विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है

– मां में एंटीबॉडी विकसित होती है जो प्लासेंटा को पार कर भ्रूण के आरबीसी को नष्ट कर देते हैं। जिससे भ्रूण एनीमिया की चपेट में आ जाता है।

– ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है और कई मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है।

– डॉ. मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन 1200 प्रसूताओं में किसी एक को इसका गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्यूजन तकनीक से इसको रोका जा सकता है।

टीम में ये लोग रहें शामिल

डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. नम्रता, डॉ. मंजूलता वर्मा, रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ, डॉ. सिद्धार्थ, बाल रोग विभाग के डॉ. हरकीरत कौर, डॉ श्रुति और डॉ. ख्याति मौजूद रहीं। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने ओ-नेगेटिव खून उपलब्ध कराया।

Leave A Reply

Your email address will not be published.