जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है, आईए जानते हैं कब शुरू हो रहा है श्राद्ध?

मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है

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आजमगढ़: उपेन्द्र कुमार पांडेय।

भारतीय सनातन धर्म में पित्र पक्ष महालया का बहुत बड़ा महत्व है। इस वर्ष पित्र पक्ष 17 सितंबर को अपराह्न 11:05 से पूर्णिमा श्राद्ध किया जाएगा। नारायण ज्योतिष परामर्श एवम अनुसंधान केन्द्र फूलपुर प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य पं.ऋषिकेश शुक्ल ने बताया की जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है।

प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध कर्म के रुप में जाना जाता है। 17 सितम्बर मंगलवार से श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष महालय शुरू हो रहा है। इस पितृपक्ष अवधि में पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया दान तर्पण रुप में किया जाता है। पितृपक्ष पक्ष को महालय या कनागत भी कहा जाता है। मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र-पौत्रों के यहां आते हैं।

श्राद्ध संस्कार

ज्योतिषाचार्य पं.ऋषिकेश शुक्ल का कहना है कि मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है और जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया-कर्म सम्पन्न हो जाते हैं, उसी को “पितर” को पितर कहा जाता है। वायु पुराण में लिखा है कि “मेरे पितर जो प्रेतरुप हैं, तिलयुक्त जौं के पिण्डों से वह तृप्त हों। साथ ही सृष्टि में हर वस्तु ब्रह्मा से लेकर तिनके तक, चाहे वह चर हो या अचर हो, मेरे द्वारा दिए जल से तृप्त हों”।

ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि भारतीय सनातन धर्म एवं शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों का श्राद्ध मनाया जाता है, उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि उन्हें दिया समर्पित किया जाता है, वह उन्हें विभिन्न रुपों में प्राप्त होता है। जैसे यदि मृतक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार देव योनि मिलती है तो श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को खिलाया गया भोजन उन्हें अमृत रुप में प्राप्त होता है। यदि पितर गन्धर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रुप में होती है। पशु योनि में है तो तृण रुप में, सर्प योनि में होने पर वायु रुप में, यक्ष रुप में होने पर पेय रुप में, दानव योनि में होने पर माँस रुप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रुप में तथा मनुष्य योनि होने पर अन्न के रुप में भोजन की प्राप्ति होती है।

श्राद्ध का कारण

ज्योतिषाचार्य पं.ऋषिकेश शुक्ल के मुताबिक प्राचीन शास्त्रों के अनुसार सावन माह की पूर्णिमा से ही पितर पृथ्वी पर आ जाते हैं। वह नई आई कुशा की कोंपलों पर विराजमान हो जाते हैं। श्राद्ध अथवा पितृ पक्ष में व्यक्ति जो भी पितरों के नाम से दान तथा भोजन कराते हैं अथवा उनके नाम से जो भी निकालते हैं, उसे पितर सूक्ष्म रुप से ग्रहण करते हैं। ग्रंथों में तीन पीढि़यों तक श्राद्ध करने का विधान बताया गया है। पुराणों के अनुसार यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं। जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं।
तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है। पिता को वसु के समान माना जाता है। रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है। आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार यह श्राद्ध के दिन श्राद्ध कराने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं अथवा ऎसा भी माना जाता है कि श्राद्ध के समय यह वहाँ मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध कर्म में उच्चारित मंत्रों तथा आहुतियों को वह अपने साथ ले जाकर अन्य पितरों तक भी पहुंचाते हैं।

17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध

पितृ पक्ष 2024 की  तिथियां:

17 सितंबर दिन मंगलवार – पूर्णिमा श्राद्ध
18 सितंबर दिन बुधवार –    प्रतिपदा श्राद्ध
19 सितम्बर दिन गुरुवार –   द्वितीया श्राद्ध
20 सितंबर दिन शुक्रवार –  तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर दिन शनिवार –   चतुर्थी श्राद्ध
22 सितंबर दिन रविवार –    पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर दिन सोमवार –   षष्ठी श्राद्ध
24 सितंबर दिन मंगलवार –  सप्तमी श्राद्ध
25 सितंबर दिन बुधवार –     अष्टमी श्राद्ध
26 सितंबर दिन गुरुवार –     नवमी श्राद्ध
27 सितंबर दिन शुक्रवार –    दशमी श्राद्ध
28 सितंबर दिन शनिवार –   एकादशी श्राद्ध
29 सितंबर दिन रविवार –     द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर दिन सोमवार –    त्रयोदशी श्राद्ध
01 सितंबर दिन मंगलवार –   चतुर्दशी श्राद्ध
02 सितंबर दिन बुधवार –      अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृ विसर्जन तर्पण।

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