उत्तम मार्दव धर्म ” विनय का मूल आधार ” : आचार्य सौरभ सागर

गुरुवार को आचार्य सौरभ सागर महाराज का 29 वां दीक्षा दिवस समारोह, दोपहर 1 बजे से भव्य आयोजन देशभर से उमड़ रहे है श्रद्धालु

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जयपुर
शहर के दक्षिण भाग स्थित टोंक रोड़ के प्रताप नगर सेक्टर 8 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में पहली बार चातुर्मास कर रहे आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में श्रद्धा-भक्ति और हर्षोल्लास के साथ दसलक्षण पर्व मनाया जा रहा है।
आचार्य श्री के सानिध्य में पर्व के दूसरे दिन “उत्तम मार्दव धर्म” मनाया गया, इस अवसर पर प्रातः 6.15 बजे मूलनायक शांतिनाथ भगवान के स्वर्ण एवं रजत कलशों से कलशाभिषेक एवं शांतिधारा की गई जिसके पश्चात् अष्ट द्रव्य से संगीत, भक्ति एवं आराधना के साथ विधान पूजन कर अर्घ चढ़ाये गए, उत्तम मार्दव धर्म अवसर पर आचार्य सौरभ सागर महाराज ने प्रातः 8.30 बजे अपने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा की

“मृदो: भाव: कर्म पा मार्दव इति निस्कते। अर्थात मानसिक कोमलता का नाम मार्दव है और कोमलता और व्यवहार में नम्रता होना मार्दव धर्म है। मार्दव धर्म में सिद्धि के लिए जाति कुलादि के मद का त्याग करना आवश्यक होता है। ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, रिद्धि, पत , शरीर इन आठ वस्तुओ का अभिमान नहीं करना मार्दव है समस्त मानव प्राणी के मन में यह भाव रहता है कि लोग मुझे अच्छा भला इंसान कहे और मेरा सम्मान करे, मेरी हर वास्तु की प्रशंसा करे, मेरे पास जो ज्ञान, कला, वैभव है वह किसी और के पास तो हो नहीं सकती। इस तरह के भाव मान कषाय के कारण आते है। अर्थात व्यक्ति कभी खुद नहीं झुकता, दुसरो से चेष्टा करता है।”

 

” मृदुता का भाव उत्तम मार्दव धर्म है, मान का नाश करता है मार्दव धर्म, विनय भाव सिखलाता है मार्दव धर्म ज्ञान की योग्यता बढ़ाता है मार्दव धर्म। भगवान के आगे ढुरने वाले चॅवर भी हमे ज्ञान की बात सिखाते है। वो कहते है – हम झुकते है ऊपर उठते है अर्थात जो जितना झुकेगा वो उतना ऊपर उठेगा। अधिकांशतया हमारा प्रयास दूसरों को झुकाने में लगा रहता है अगर हम थोड़ा सा झुक जाए तो सामने वाला पुरा ही झुक जाएगा किन्तु – ” झुकता तो वही है जिसमे जान होती है वरना अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है। रावण की मान कषाय ने ही उसके प्राणों का वियोग करवाया। गुरु के चरणों में अगर रहकर शिष्य ज्ञान प्राप्त करे तो हो सकता है, लेकिन अगर वही शिष्य गुरु के सिर पर खड़ा होकर ज्ञान प्राप्त करना चाहे तो नहीं प्राप्त कर सकता है। रावण के अंतिम समय में राम ने लक्ष्मण से कहाँ जाओ रावण से कुछ सीख कर आओ तब रावण ने उसे एक ही सन्देश दिया कभी मान कषाय नहीं करना और विनय ही ज्ञान का मूल साधन है अतः मान छोड़ कर मार्दव धर्म को धारण करना चाहिए।

गुरुवार को उत्तम आर्जव धर्म, होगा भव्य नृत्य नाटिका ” सुरेंद्र से सौरभ तक ” का मंचन

वर्षायोग समिति मुख्य समन्वयक गजेंद्र बड़जात्या ने बताया की गुरुवार को दशलक्षण पर्व के तीसरे दिन ” उत्तम आर्जव धर्म ” पर्व मनाया जायेगा साथ ही गुरुवार को आचार्य सौरभ सागर महाराज का 29 वां दीक्षा दिवस समारोह भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। गुरुवार को प्रातः 5.15 बजे गुरुभक्ति, प्रातः 6.15 बजे जिनाभिषेक, शांतिधारा प्रातः 7 बजे से विधान पूजन, दोपहर मध्याह 1 बजे से मुख्य पांडाल पर आयोजित ” दीक्षा दिवस समारोह ” के अंतर्गत विशेष आयोजन के माध्यम से पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, गुणानुवाद सभा और मंगल आरती का आयोजन होगा। इस दौरान राजधानी जयपुर से ही नही अपितु जसपुर (छतिसगढ़), दिल्ली, एमपी, यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड इत्यादि राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण सम्मिलित होकर आचार्य श्री का दीक्षा दिवस पर्व मनाएंगे। आचार्य सौरभ सागर महाराज के 29 वें दीक्षा दिवस के अवसर पर विशुद्ध वर्धनी बहु कला मंडल प्रताप नगर द्वारा आचार्य श्री के जीवन पर आधारित ” भव्य नृत्य नाटिका सुरेंद्र से सौरभ तक ” का मंचन सायं 7.30 बजे से किया जायेगा। जिसके मुख्य अतिथि विमल, तरुण कुमार जैन प्यावडी वाले रहेंगे और दीप प्रवज्जलन राजूलाल, महेंद्र, राकेश जैन परिवार पचाला वालों द्वारा दिया जायेगा।

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