हाईकोर्ट से योगी सरकार को दो माह में हलफनामा दाखिल करने का आदेश, क्लिक कर जानें क्या है मामला?
अब यूपी सरकार दो माह के अंदर कर्मचारियों को किसी अन्य योजना में समायोजित किए जाने सहित अन्य मांगों को लेकर उचित कार्यवाही कर हाईकोर्ट में दायर करेगी अपना हलफनामा
लखनऊ, रिपोर्टर।
अस्पतालों में तैनात कोविड कर्मचारियों को किसी अन्य योजना के तहत समायोजित किए जाने के मामले में हाईकोर्ट इलाहाबाद की खंडपीठ ने उप्र की योगी सरकार को दो माह में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ के यूपी महामंत्री सच्चिता नन्द मिश्र एवं अध्यक्ष रितेश मल्ल के नेतृत्व में इसके लिए शाहिद तथा अन्य 49 लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। सुनवाई करते हुए न्यायधीश सलिल कुमार राय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार दो माह में हलफनामा दायर करें व उसके बाद याचीगण अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
अब यूपी सरकार दो माह के अंदर कर्मचारियों को किसी अन्य योजना में समायोजित किए जाने सहित अन्य मांगों को लेकर उचित कार्यवाही कर हाईकोर्ट में अपना हलफनामा दायर करेगी। याचिका दायर करने वालों ने कहा है कि हम सभी लोगों को किसी अन्य योजना के अंतर्गत निरंतर चलने वाली सेवाओं में समायोजित किया जाए।
महामंत्री सच्चिता नन्द मिश्र ने कहा कि वर्ष 2019 में यूपीएचएसएसपी परियोजना समाप्ति के पश्चात परियोजना में कार्यरत 5 हजार कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा 51 जनपदों में सेवा प्रदाता फर्म का चयन करते हुए उनकी सेवाएं निरंतर जारी रखी गई थी। यह सभी कर्मचारी आज भी तैनात हैं। इसी तरह कोविड कर्मचारियों का भी समायोजन होना चाहिए। यूपी के विभिन्न अस्पतालों में कोरोना काल के दौरान कोविड कर्मचारी तैनात किए गए थे। सरकार की तरफ से उनकी सेवाएं समाप्त की जा रही है। बार-बार आंदोलन किए जाने पर इन कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा एक या दो माह का सेवा विस्तार दिया जा रहा। विभिन्न जनपदों में सीएमओ द्वारा इनको हर माह सेवा समाप्ति का नोटिस जारी किया जा रहा है। संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ द्वारा कई बार सरकार को पत्र भेजा गया। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वार्ता पर इन कर्मचारियों को केवल एक या दो माह का ही सेवा विस्तार मिल पाया था। 31 मार्च के बाद दो माह के लिए उनकी सेवाएं विस्तारित की गई है। पिछले तीन वर्षों से कर्मचारी निरंतर मरीजों की सेवा कर रहे हैं। साथ ही विभिन्न अस्पतालों में इन कर्मचारियों की जरूरत भी है। फिर भी सरकार इन कर्मचारियों को अस्पतालों में अन्य सेवा प्रदाता फर्म द्वारा समायोजित नहीं कर रही है। मजबूर कर्मचारी कोर्ट की शरण में गए है। अब देखना है कि सरकार इन कर्मचारियों का किस तरह से समायोजन करती है तथा कर्मचारियों के पास अब लडऩे के अलावा कोई विकल्प नहीं है।