Baisakhi 2024: दिल्ली के कई इलाकों में धूमधाम से मनाई गई बैसाखी

बैसाखी ऋतु परिवर्तन का प्रतीक

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नई दिल्ली 

देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में शानिवार को बैसाखी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया। आज पूरे दिन न गुरुद्वारों में शबद गुरबानी और लंगर चलता रहा। शबद कीर्तन सुनने के लिए सुबह से ही श्रद्धालु गुरुद्वारे में पहुंचने लगे थे टैगोर गार्डन, तिलक नगर, गुरुनानक नगर समेत अन्य इलाकों में गुरुद्वारे रोशनी से नहाए हुए दिखे। खासतौर पर गुरुद्वारा बंगला साहिब, रकाबगंज साहिब, गुरुद्वारा शीश गंज। यही नहीं, दीवान साहिब की सजावट देखते ही बन रही थी। लोगों ने बताया कि उन्होंने रात्रि के समय अपने घरों में भांगड़ा व गिद्दा नृत्य का प्रबंधन किया हुआ है।

दिल्ली के कई इलाकों के गुरुद्वारा बंगला साहिब में सुबह से ही श्रद्धालु सुबह पवित्र सरोवर में स्नान करते दिखे। जिसमें रकाबगंज गुरुद्वारा में दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। जगह-जगह लंगर प्रसाद का प्रबंध किए गए। पटेल नगर से आए मनमीत सिंह ने बताया कि बैसाखी की बात पीले रंग के बिना अधूरी है। इस मौसम में खेत-खलिहानों में पीले रंग का राज होता है। इस उपलक्ष्य में लोग पीले चावल का पकवान इस दिन बनाते हैं। उन्होंने बताया कि यह त्योहार फसल कटाई से जुड़ा है। वहीं, यशप्रीत कौर ने बताया कि इस दिन पंजाब में किसानों द्वारा भांगड़ा और महिलाओं की ओर से गिद्दा नृत्य किया जाता है। लोग इस त्योहार का भरपूर आनंद लेते हैं। उन्होंने बताया कि रात में उन्होंने भी ऐसा कार्यक्रम की व्यवस्था की हुई है।

बैसाखी को ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं माना जाता बल्कि यह पंजाबी समुदाय द्वारा नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। रबी की फसल कटाई करने के अलावा बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। साल 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के लिए एक विशेष समुदाय खालसा पंथ की स्थापना भी की थी।

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