आजमगढ़, उपेन्द्र कुमार पांडेय।
वेदान्ता इंटरनेशनल स्कूल में श्रम दिवस के अवसर पर आज़मगढ़ श्रमायुक्त राजेश पाल व
वेदान्ता इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंध निदेशक शिव गोविंद सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर व माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके बाद बच्चों ने गीत के माध्यम से मुख्य अतिथि का स्वागत किया। बच्चों ने विभिन्न प्रकार के गाने जैसे हम तो मजदूर हैं…नाटक दैनिक जीवन में मजदूरों का महत्व तथा दिव्यांशु ने भाषण के माध्यम से श्रमिकों के महत्व, योगदान व उनकी जरूरतों का आभास कराया।
मुख्य अतिथि ने श्रम और भाग्य को परिभाषित किया। जीवन में श्रम को परिभाषित करते हुए बताया कि श्रम से असम्भव भी सम्भव हो जाता हैं।
बैठ भाग्य की बाट जोहना, यह तो कोरा भ्रम है।
अपना भाग्य विधाता सम्बल, हर दम अपना श्रम है।
मानवता का मान इसी में, जीवन सरस निहित है।
निरालम्ब वह मनुज, कि जो, नीरस है श्रम विरहित हैं।प्रधानचार्य डॉली शर्मा ने कहा कि मनुष्य मात्र का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है। मनुष्य से लेकर चींटी और हाथी तक प्रत्येक जीव सुख चाहता है एवं दु:ख से छुटकारा पाने का इच्छुक है। सुख का मूल कारण ज्ञान है और ज्ञान की प्राप्ति बिना श्रम के नहीं हो सकती। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सुख का साधन श्रम है। बिना श्रम के मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता। वास्तविकता तो यह है कि बिना श्रम के कोई भी काम हो ही नहीं सकता। श्रम जीवन की कुंजी है।
श्रमजीवी यश पाता है, स्वास्थ्य, शान्तिधन, शौर्य-आनन्द।
स्वावलम्बन भरी साधुता, पद-वैभव, श्रम के आनंद।
प्रबंध निदेशक शिव गोविंद सिंह ने कहा कि वास्तव में श्रम का ही दूसरा नाम भाग्य है। श्रम के बिना भाग्य की कोई सत्ता ही नहीं है। मैं अपने भाग्य का स्वयं निर्माता हूँ। मेरा श्रम ही मेरे भाग्य का निर्माण करता है। अपने भाग्य को अच्छा-बुरा बनाना मनुष्य के अपने ही हाथ में है। वास्तव में भाग्य के भरोसे पर हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना कायरता है। श्रम के बिना आप से आप कोई काम हो ही नहीं सकता। यदि रोगी भाग्य के भरोसे बैठा रहे, रोग के नाश के लिए भाग-दौड़ न करे तो दुष्परिणाम निश्चित है। बिना श्रम के हम जीवन में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते, यहाँ तक कि भोजन भी बिना श्रम के पेट में नहीं पहुँचता।
श्रम शक्ति को देखते हुवे नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि “संसार में असम्भव कोई काम नहीं। असम्भव शब्द को तो केवल मुखों के शब्दकोष में ही ढूँढा जा सकता है।”
नास्ति किंचिद् श्रमात् असाध्यं, तेन श्रमपरोभव॥ श्रम यज्ञ से बढ़कर है, श्रम ही परमतप है, श्रम से कुछ भी असाध्य नहीं है; अत: श्रमवान बनो।कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि ने सभी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को श्रम दिवस के अवसर पर उपहार देकर सम्मानित किया। जिसके लिये श्रमायुक्त ने विद्यालय प्रबंधन को धन्यवाद दिया।कार्यक्रम के अंत मे श्रमायुक्त राजेश पाल व स्टेनो अनिल कुमार सिंह को अंगवस्त्रम व प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।
संचालन अंशिका सिंह, अनन्या यादव व सुप्रिया राय ने किया तथा स्वागत सम्बोधन प्रधानचार्य डॉली शर्मा व धन्यवाद प्रबंध निदेशक शिव गोविन्द सिंह ने किया।
इस अवसर पर किशन मिश्रा, विवेक मिश्रा, फहीम अहमद, रीना यादव, सुबिया सईद आदि उपस्थित रहे।