नई दिल्ली
Ayurveda से अल्जाइमर्स का बेहतर प्रबंधन और इलाज संभव है। यह एक सामाजिक समस्या है। इसमें रोगी की शारीरिक और मानसिक हालत गिरती चली जाती है। आखिरी स्टेज में मरीज अपनी देखभाल खुद करने में असमर्थ हो जाता है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे जाती है। लेकिन आयुर्वेद के माध्यम से अल्जाइमर्स और डिमेंशिया जैसे रोगों का बेहतर प्रबंधन और इलाज संभव है।
दिल्ली नगर निगम के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद) डॉ आर.पी. पाराशर का कहना है कि आयुर्वेद की पंचकर्मा थेरेपी के साथ-साथ अश्वगंधा, जटामांसी, ब्राह्मी, मंडूकपर्णी, शंखपुष्पी, वच, हल्दी, तुलसी, गिलोय आदि आयुर्वेदिक दवाएं अल्जाइमर की चिकित्सा में प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।
अल्जाइमर्स रोग की शुरुआत मस्तिष्क के सेल्स व तंत्रिकाओं के नष्ट होने के कारण होती है और समय बीतने के साथ-साथ मरीज की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ती चली जाती है। रसराज रस, महावातविध्वंसक रस, वातगजांकुश रस आदि दवाएं मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को मजबूत बनाती हैं। शिरोधारा नामक पंचकर्म थेरेपी मस्तिष्क के सेल्स को नष्ट होने से बचाने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। इसके अंतर्गत दवाओं से सिद्ध तेल धीरे-धीरे मस्तिष्क और सिर पर टपकाए जाते हैं।
इसके अलावा आयुर्वेदिक चिकित्सा के साथ यदि योग और प्राणायाम का अभ्यास नियमित रूप से किया जाए तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। आनुवंशिक कारणों के अलावा मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, स्मोकिंग और अल्कोहल के प्रयोग से भी अल्जाइमर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
अल्जाइमर्स एसोसिएशन के अनुसार इस समय दुनिया भर में अल्जाइमर्स के 320 लाख से अधिक मरीज हैं और डिमेंशिया जैसे संबंधित लोगों को मिलाकर यह संख्या 550 लाख के करीब हो जाती है।
सी.एस.आई.आर. व नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च के अनुसार भारत में अल्जाइमर्स के 38.4 लाख रोगी हैं और डिमेंशिया जैसे संबंधित रोगों को मिलाकर यह संख्या 44 लाख से ऊपर हो जाती है। प्रौढ़ावस्था का व्यक्ति यदि कुछ समय पहले कही बातों, रोजमर्रा के कामों तथा नियत स्थान पर रखे जाने वाली चीजों के बारे में भूलने लगे, खाने-पीने की आदतों में बदलाव दिखाई दे, परिचित व्यक्ति और वस्तुओं के बारे में याददाश्त में कमी आने लगे तो शुरुआती अवस्था में ही इलाज शुरू कर देना चाहिए ।