Kota में छात्रा की आत्महत्या पर सरकार और प्रशासन की नाकामी- संयुक्त अभिभावक संघ

अभिभावक बच्चों की भारी भरकम फीस भी चुकाएं, शिक्षक और संचालक जब नाकाम हो जाए तो बच्चों की आत्महत्या का ठीकरा भी अभिभावक लेवे - अभिषेक जैन बिट्टू

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जयपुर

हर साल की तरह इस साल भी कोटा नगरी में छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही है मात्र पांच दिनों में दो छात्र आत्महत्या कर चुके है। रविवार को कोटा शहर की निहारिका ने अपने ही घर पर एक सुसाइड नोट लिखकर फांसी का फंदा लगा पढ़ाई के दबाव से मुक्ति पा ली है इस मामले पर संयुक्त अभिभावक संघ ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा की ” कोटा शहर जो शिक्षा नगरी के नाम से विख्यात थी वह अब सरकार और प्रशासन की नाकामी, शिक्षक और संचालकों की मनमानी के चलते छात्रों की मौत नगरी बनकर रह गई है, विगत सात वर्षों में सैकड़ों बच्चों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या को अपने गले लगा लिया और जिम्मेदारों ने अपनी नाकामियों का ठीकरा फोड़कर अभिभावकों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। ”

प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की कोटा में जिस प्रकार छात्रों द्वारा आत्महत्याओं के मामले बढ़ते जा रहे है उसके जिम्मेदार केवल अभिभावक नही बल्कि सरकार, प्रशासन, संचालक और शिक्षक भी एक सामान जिम्मेदार है। केवल अभिभावकों पर ठीकरा फोड़कर जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नही झाड़ सकते है। एक कमजोर विधार्थी को लाखों रु की फीस लेने वाले को जिम्मेदारी लेनी चाहिए, किंतु जिम्मेदार लोग काबिल विधार्थी की कामयाबी पर तो अपनी ढींगे हांकने लग जाते है तब अभिभावकों पर कोई ठीकरा नही फोड़ा जाता है केवल जब विधार्थी कमजोर हो या कोई घटना, दुर्घटना घटती है तो सभी जिम्मेदार लोग पल्ला झाड़ अभिभावकों को दोषी साबित करने पर जुट जाते है। कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को मरने के लिए शिक्षित नहीं करता है बल्कि बच्चे का भविष्य बेहतर हो इसके लिए लाखों रु कर्ज और लोन लेकर शिक्षित करते है जिससे उसे भविष्य में किसी भी समस्याओं का सामना नहीं करना पढ़े, लेकिन विगत 5-7 वर्षो में कोचिंग संचालकों ने शिक्षा को बिजनेस का रूप देकर छात्रों और अभिभावकों के बीच एक अवधारणा को कुछ इस विकसित कर दिया है की छात्र कोई भी गलती करे या छात्र के साथ कोई भी घटना घट जाती है या फिर कोई गलत कदम उठा लिया जाता है तो केवल अभिभावकों को दोषी करार दिया जाता है केंद्र और राज्य सरकार ने जितने भी दिशा निर्देश दिए है या कानून बनाए है उन सभी में केवल लाखों रु की फीस देने वाले अभिभावक का कोई स्थान नहीं है जो अभिभावकों से इनकम कर रहे है उन सभी समितियों में केवल उन्हीं को स्थान देकर सुझाव, प्रस्ताव लिए जा रहे है और उसके बाद भी जब घटना हो रही है तब भी अभिभावक को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

 

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