इंदिरानगर स्थित जनकल्याण आई हॉस्पिटल में आंख के ऑपरेशन के लिए बेहोशी का इंजेक्शन लगाने के बाद 10 साल के बच्चे की मौत हो गई। इससे आक्रोशित परिजनों ने हॉस्पिटल पहुंचकर हंगामा शुरू दिया। यह देख डॉक्टर और पूरा स्टाफ अस्पताल बंद करके भाग निकला। मौके पर पहुंची पुलिस ने समझा-बुझाकर सभी को शांत कराया।
आरोप है कि ऑपरेशन के बाद अमन को होश नहीं आया तो अस्पताल प्रशासन ने गुपचुप तरीके से दूसरे हॉस्पिटल में शिफ्ट करा दिया। परिजनों ने गाजीपुर थाने में अस्पताल के संस्थापक व डॉक्टर के खिलाफ तहरीर दी है। पुलिस ने जांच भी शुरू दी है।
दीवाली में पटाखा जलाते हुए बच्चे के आंख में हुआ था इंफेक्शन
सुलतानपुर निवासी अर्जुन ने बताया कि दीपावली के दिन पटाखा जलाते समय बेटे अमन मिश्रा की आंख में इंफेक्शन हो गया था। सुलतानपुर में डॉक्टरों को दिखाने के बाद लखनऊ में पहुंचे थे। जिसके बाद सात नवंबर को अमन को शाम सात बजे इंदिरानगर स्थित आई हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने अमन की आंख की जांच करने के बाद ऑपरेशन करने की सलाह दी थी।
बेहोशी के इंजेक्शन देने के बाद बच्चे को नहीं आया था होश
ऑपरेशन के दौरान अमन को बेहोशी का इंजेक्शन दिया गया। इसके बाद उसे होश नहीं आया। आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने बिना सूचना दिए उसे अपनी निजी वाहन से चैतन्य अस्पताल में भर्ती करा दिया। अर्जुन ने बताया कि हम लोग लगातार बच्चे की हालत के बारे में पूछते रहे। लेकिन हमें कुछ नहीं बताया जा रहा था। डॉक्टर यही कहते रहे कि बच्चे को अभी होश नहीं आया है। होश आने पर मिलने दिया जाएगा। हम लोग अमन के होश में आने का इंतजार करते रहे।
चैतन्य हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित किया, फिर शुरू हुआ हंगामा
उधर, देर रात चैतन्य हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने अमन को मृत घोषित कर दिया। जिससे परिजन नाराज हो गए। आक्रोशित परिजन जनकल्याण आई हॉस्पिटल पहुंचे और जमकर हंगामा किया। इसके बाद डॉक्टर और पूरा स्टाफ अस्पताल बंद करके भाग गया। परिजनों ने गाजीपुर थाने में डॉक्टर के खिलाफ तहरीर दी है।
अस्पताल के संस्थापक और डॉक्टरों पर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की मांग
परिजनों ने अस्पताल के संस्थापक जगदीश प्रसाद गुप्ता और डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है। परिजनों ने गाजीपुर थाने में लिखित शिकायत देते हुए न्याय की गुहार लगाई है। वहीं पुलिस ने पूरे प्रकरण की जांच शुरू कर दी है।
सीएमओ कार्यालय में नहीं होती सुनवाई
लखनऊ सीएमओ कार्यालय के अफसरों की निजी अस्पतालों पर मेहरबानी मरीजों पर भारी पड़ रही है। निजी अस्पतालों की जिम्मेदारी डिप्टी सीएमओ डॉ. एपी सिंह को दी गई है। इसके बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती। डॉ. एपी सिंह की शासन से लेकर स्वास्थ्य विभाग के बड़े अफसरों तक है। करीब पांच साल से वह लगातार इसी पद पर जमे हुए हैं। जबकि तीन साल में ट्रांसफर या विभाग बदल दिया जाता है।