KGMU: सर्दियों में बच्चों, बुजुर्गों के लिए निमोनिया और ज्यादा खतरनाक, समय पर इलाज से मिल सकता है जीवनदान
12 नवंबर को आयोजित होने वाले विश्व निमोनिया दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित प्रेस वार्ता
Indinewsline, Lucknow:
सर्दियों में निमोनिया और ज्यादा खतरनाक होता है और इससे 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। इससे बचाव के उपाय, तुरंत पहचान और समय पर इलाज निमोनिया के लिए जीवनदान साबित हो सकता है। यह जानकारी केजीएमयू के पल्मोनरी और क्रिटिकल मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने दी। वह 12 नवंबर को आयोजित होने वाले विश्व निमोनिया दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित प्रेस वार्ता को सम्बोधित कर रहे थे।
स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया बैक्टीरिया सबसे प्रमुख कारण
प्रो. वेद प्रकाश ने कहा कि निमोनिया होने के कई सारे कारण हैं। खासतौर से बैक्टीरिया, वायरस और फंगस इसके मुख्य कारण होते हैं। अगर देखा जाए तो स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया बैक्टीरिया इसका सबसे प्रमुख कारण है। इसके अलावा रेस्पिरेटरी सिंकाईटियल वायरस, इन्फ़्लुएन्ज़ा और कोरोना वायरस सामान्य वायरल कारक हैं। साथ ही न्यूमोसिस्टिस जिरोवेसी म्यूकर, एसपरजिलम जैसे फंगल संक्रमण भी कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में ज्यादा मिलते हैं। इसके अलावा कुपोषण, पुरानी बीमारियां, प्रदूषण, धूम्रपान भी यह बीमारी होने के खतरे और बढ़ा देते हैं। 5 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चे और 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को यह बीमारी होने की ज्यादा आशंकाएं होती हैं।
भारत में हर वर्ष पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले सामने आते हैं
चौंकाने वाले आंकड़ों का खुलासा करते हुए प्रो. वेद प्रकाश ने कहा कि भारत में हर वर्ष पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर निमोनिया के लगभग 26 लाख मामले सामने आते हैं। इनमें करीब 8 लाख मामले ऐसे होते हैं जिनमें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ती है। एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में निमोनिया से पांच वर्ष की आयु से कम वाले लगभग 6 लाख 10 हजार बच्चों की मौत हुई।
अनुमान के अनुसार घरेलु वायु प्रदूषण के कारण अधिकांश बच्चे इसका शिकार हो जाते हैं। इसलिए निमोनिया के बचावों के साथ ही इसकी वैक्सीन लेने की भी आवश्यकता है जो केजीएमयू में भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि 2024 में हर सांस मायने रखती है निमोनिया को उसके रास्ते पर रोकें थीम पर विश्व निमोनिया दिवस का आयोजन होगा।
निमोनिया जानलेवा बीमारी, इलाज में समय का ध्यान देना अति महत्वपूर्ण
रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग से प्रोफेसर आर.ए.एस.कुशवाहा ने बताया कि निमोनिया जानलेवा बीमारी है। इस बीमारी के इलाज में समय का ध्यान देना अति महत्वपूर्ण है। बीमारी को सही समय पर पहचानकर नियंत्रित किया जा सकता है। इलाज के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह दवाएं अति संवेदनशील मरीजों के उपचार में प्रयोग की जाती हैं। डायबटीज, सांस की बीमारी के मरीज समेत अन्य मरीजों को भी निमोनिया हो सकता है।
कई केस में निमोनिया के मरीज को भर्ती करने की आवश्यकता नहीं होती
मेडिसिन विभाग से प्रो. के.के.सावलानी के मुताबिक निमोनिया के सामान्य लक्षण हैं, लेकिन इसकी पहचान जल्दी जरूरी है। इस बीमारी में जटिल लक्षण के मरीज को तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। हालांकि कई केस में निमोनिया के मरीज को भर्ती करने की आवश्यकता नहीं होती है। सांस की बीमारी, कैंसर के मरीज, बुजुर्ग, बच्चें और डायबिटीज समेत अन्य मरीजों को इन्फ्लुएंजा का टीका जरूर लगवाना चाहिए। उन्होंने बताया कि टीकाकरण के लिए सरकार की ओर से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसे में लोगों को हर साल टीकाकरण कराना चाहिए।
निमोनिया में सांस तेज चलती है और नो निमोनिया में सांस तेज नहीं चलती
बाल रोग विभाग से प्रोफेसर राजेश यादव ने बताया कि निमोनिया दो प्रकार का होता है। जिसे निमोनिया और नो निमोनिया कहते हैं। निमोनिया में सांस तेज चलती है और नो निमोनिया में सांस तेज नहीं चलती है। बच्च सुस्त रहता है, शरीर का नीला पड जाना, पसलियों का चलना ये लक्षण दिखाई देने पर बुजुुर्ग व बच्चे को भर्ती कराएं। उन्होंने बताया कि शिशुओं को छह माह तक ब्रेस्ट फीडिंग जरूर कराएं। यह दूध बच्चों को आंतरिक रूप से बीमारियों से लडऩे में काफी सहायता करता है।
निमोनिया का कुपोषण भी मुख्य कारण
प्रोफेसर राजेश यादव ने कहा कि देश में ब्रेस्ट फीडिंग करने वाले शिशुओं का अनुपात 30 प्रतिशत है। जोकि काफी कम है। जो बच्चे ब्रेस्ट फीड नहीं करते है ऐसे बच्चों में 90 प्रतिशत बिमारियां होने का खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि निमोनिया होने का मुख्य कारण कुपोषण भी है जिसके कारण कम वजन, पौष्टिक आहार का सेवन न करना समेत कई अन्य कारण हैं।
कार्यक्रम में पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन सहित प्रतिष्ठित संकाय सदस्यों ने भाग लिया। पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग से डॉ. सचिन कुमार, डॉ. मोहम्मद आरिफ और डॉ. अतुल तिवारी भी मौजूद रहे।