लखनऊ में मंथन: 2019 में देश में 73138 गायब हुए बच्चे, 2018 की तुलना में यह संख्या 8.9 फीसदी ज्यादा

उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में बच्चों के गायब होने और बाल तस्करी की चुनौती ज्यादा

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लखनऊ। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 73138 बच्चे गायब हुए। वर्ष 2018 की तुलना में गायब हुए बच्चों की संख्या 8.9 फीसदी ज्यादा रही है। देश में प्रत्येक आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में बच्चों के गायब होने और बाल तस्करी की चुनौती ज्यादा है। बाल श्रम, बाल दासता और चाइल्ड सेक्स वर्क को रोके के लिए कन्वर्जेंस जरूरी है।
अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस पर सूबे की राजधानी लखनऊ में बच्चों के अधिकारों से जुड़े हर मुद्दे पर सोमवार को गहन मंथन किया गया। पहली बार उत्तर प्रदेश में समागम समिट 2023 नाम से किये गये इस नवाचार के दौरान सरकार के साथ सिविल सोसाइटी और कार्पोरेट के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि एक मंच पर बैठे और तय किया कि समन्वित प्रयासों से सूबे में बच्चों के हालात बदले जाएंगे। आयोजन के दौरान बाल श्रम, बाल तस्करी, बाल विवाह, बाल स्वास्थ्य और बाल पोषण जैसे मुद्दों पर पैनल डिस्कसन के बाद ठोस कार्ययोजना भी तैयार की गयी।


समागम समिट का शुभारंभ करते हुए प्रदेश सरकार में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कहा कि बच्चों के हितों के लिए सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। समागम समिट का जो निष्कर्ष निकले उससे उन्हें अवश्य अवगत कराया जाए। बच्चों के हित में जो निष्कर्ष सामने आएंगे उनको लागू करने के लिए अगर सरकार को नीतियों में परिवर्तन करना पड़ा तो वह भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ और बच्चों के लिए काम कर रहे स्वयंसेवी संगठनों के साथ बैठने के लिए भी सरकार हमेशा तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जन कल्याण के तमाम कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उनकी प्रेरणा से चलाए गए कार्यक्रमों का ही असर है कि प्रदेश में मातृ शिशु मृत्यु दर को अपेक्षाकृत कम करने में सफलता हासिल हुई है। जन स्वास्थ्य की दिशा में अभी और भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें यह समागम एक मार्गदर्शन की भूमिका निभाएगा। स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका की सराहना करते हुए उप मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके सुझावों पर उनके साथ बैठ कर विचार किया जाएगा।


उप मुख्यमंत्री ने आयुष्मान भारत योजना समेत केंद्र और प्रदेश सरकार की विभिन्न योजनाओं का उल्लेख किया। कहा कि भारत आज विश्व का नेतृत्व कर रहा है। कोविड का टीका हमारे अपने देश में तैयार किया गया और पूरा विश्व उससे लाभान्वित हुआ है। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारत की संस्कृति यही है कि बच्चों को सारी सुख सुविधाएं दी जाएं। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए बेहतर व्यवस्था पर जोर होगा।
यूपी सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग की राज्य मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने कहा कि प्रदेश सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों की सूरत बदली है। शिक्षा के साथ संस्कार पर जोर देने की आवश्यकता है। जिसमें स्वयंसेवी संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं। सरकार अपना काम कर रही है और बदलाव ला रही है लेकिन सिविल समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।
केंद्र सरकार में राज्य मंत्री कौशल किशोर का प्रतिनिधित्व करते हुए मोहनलालगंज के विधायक अमरीश रावत ने भी केंद्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की और कहा कि बच्चों के हित में हर एक जरूरी कदम उठाया जाएगा। हालांकि राज्य मंत्री कौशल किशोर ने समागम समिट को वर्चुअली संबोधित किया और कहा कि बच्चों से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए जनांदोलन का माहौल बनाना होगा। उन्होंने श्रम मंत्री रहने के दौरान बाल श्रम रोकने के अपने प्रयासों की चर्चा की और कहा कि बच्चों के जीवन को सुरक्षित बनाने में सभी को मिल कर प्रयास करने होंगे। केंद्र सरकार द्वारा बच्चों के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जा रहा है जिससे बदलाव भी आ रहे हैं।
इससे पहले आयोजन का नेतृत्व कर रही सेफ सोसाइटी संस्था के निदेशक विश्व वैभव शर्मा ने कहा कि नेशनल एक्शन एंड कोआर्डिनेशन ग्रुप फॉर एंडिंग वॉयलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रेन (एनएसीजी-ईवीएसी) के उत्तर प्रदेश चैप्टर के नेतृत्वकर्ता के तौर पर सेफ सोसाइटी संस्था बच्चों के साथ लगातार कार्य कर रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 नवम्बर 1959 को बाल अधिकारों की घोषणा की थी। उसी समय से 20 नवम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय बाल दिवस मनाया जा रहा है।
एनएसीजी ईवीएसी के भारत चैप्टर के चेयरमैन संजय गुप्ता ने कहा कि प्रदेश की राजधानी में इस मौके पर समागम समिट के जरिये सरकार और उसके विभागों के साथ स्वयंसेवी संस्थाएं, कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलीटी के प्रैक्टिशनर्स, कार्पोरेट, उद्यमी, शिक्षाविद्, कानूनविद् और मीडिया के प्रतिष्ठित लोगों के एक मंच पर बैठने का उद्देश्य यही है कि प्रदेश में बच्चों के मुद्दों और उनके लिए काम के दौरान आने वाली चुनौतियों का समाधान निकाला जाए।


संस्था के प्रोग्राम मैनेजर बृजेश चतुर्वेदी ने प्रदेश में बच्चों की स्थिति पर प्रकाश डाला और संभावित समाधान के बारे में भी चर्चा की। स्ट्रेटेजी, एडवोकेसी एंड पार्टनर स्पेशलिस्ट लारा शंकर चंद्रा ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से बताया कि कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के जरिये सरकार और स्वयंसेवी संगठन मिल कर बच्चों के जीव स्तर की दशा और दिशा बदल सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन पूजा दयाल ने किया। इस मौके पर अलग अलग पैनल डिस्कसन में लोगों ने राय दी।
-इन बिंदुओं पर हुआ चिंतन
1-सूबे की साक्षरता दर मात्र 69 फीसदी है। बच्चों की बेहतरीन शिक्षा के लिए प्रदेश सरकार स्कूलों का संचालन तो कर रही है लेकिन उनमें शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्टर और गुणवत्ता का स्तर चुनौती है। मिशन प्रेरणा और निपुण भारत योजनाओं से स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन अभी जमीनी स्तर पर काफी बदलाव आवश्यक हैं। इन बदलावों में कार्पोरेट और स्वयंसेवी संगठन सरकार के साथ अहम भूमिका निभा सकते हैं।
2- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 73138 बच्चे गायब हुए। वर्ष 2018 की तुलना में गायब हुए बच्चों की संख्या 8.9 फीसदी ज्यादा रही है। देश में प्रत्येक आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में बच्चों के गायब होने और बाल तस्करी की चुनौती ज्यादा है। बाल श्रम, बाल दासता और चाइल्ड सेक्स वर्क को रोके के लिए कन्वर्जेंस जरूरी है।
3- प्रदेश उन राज्य में से एक है जहां सर्वाधिक नवजात और बच्चों की मौत होती है जिनमें स्वास्थ्य और पोषण की चुनौतियां प्रमुख हैं। सरकार द्वारा मातृ शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों के द्वारा इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन इसमें कार्पोरेट भागीदारी की अहम भूमिका है।
4- राष्ट्रीय पारिवार स्वास्थ्य सर्वे पांच के आंकड़ों के मुताबिक 15.8 फीसदी लड़कियों और तेईस फीसदी लड़कों की शादी अठारह वर्ष की उम्र से पहले हो रही है। वर्ष 2015-16 के सापेक्ष इसमें कमी आई है लेकिन इस स्थिति को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है।

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